कभी कभी

Neha Tripathi
Jan 27, 2023

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Kanyakumari, 2013

कभी कभी मन में एक उफान सा उठा है,

सब्र का बाँध सा टूटा है।

ना जाने कौन सी उम्मीद लगाए बैठी हूँ,

हर मोड़ एक जंग हारी बैठी हूँ।

जब जब सुबह को देखा है,

रात का अँधेरा ही दिखा।

न जाने इस स्वयं से क्यों आस लगाये बैठी हूं,

हर बार इसे ठेस पहुंचाए देती हूँ।

जब जब कदम बढ़ाया है,

थोड़ा खुद को अकेला पाया है।

ना जाने इस पीड़ा को क्यों सजाए बैठी हूँ,

हर बार इसके कर्ज चुकाए देती हूँ।

कभी कभी मन में एक उफान सा उठा है,

सब्र का बाँध सा टूटा है।

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Written by Neha Tripathi

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